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lakava ka deshee ilaaj लकवा का देशी इलाज



 Ayurveda ke anusar paralysis आयुर्वेद केअनुसार से लकवा क्या 
Lakava ka deshee ilaaj लकवा का देशी इलाज


पक्षाघात या लकवा को एक ऐसी बीमारी के रूप में बांटा गया है जो असंतुलित वात की वजह से उत्पन्न होता है। जब यह  बीमारी शरीर के  एक अंग जैसे हाथ अथवा पैर  को ही प्रभावित करती है तब इस प्रकार के वात के स्वरूप को एकांग वात कहते है।  परंतु  इस  बीमारी से दोनों हाथों और दोनो  पैर को प्रभावित होते है तो इस प्रकार को सर्वांग वात कहा जाता है। परिणामस्वरूप बात करने बोलने मै परेशानी और चेहरे के मूल स्वरूप मै बदलाव, सूजन आदि से संबंधित लकवा हो सकता है।

 आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात को लंबे समय तक (3 से 4 महीने) नियंत्रित करने के लिए स्‍वेदन, स्‍नेहन, बस्‍ती, शिरोबस्‍ती (सिर पर तेल डालना), विरेचन आदि की जरूरत होती है। आयुर्वेद में स्ट्रोक से पहले निम्न लक्षण सामने आते हैं जिनको अगर समय पर पहचान लिया जाए और इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे लकवा का रूप लेने से रोका जा सकता है।             

Why does paralysis occur?  पैरालाइसिस क्यो होता है?
Symptoms of paralysis

लकवा या पैरालाइसिस अधिकांशत स्ट्रोक या  nervous system    तंत्रिका तंत्र   में खराबी  की वजह से होता है।  विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने,रेडिएशन, ऑटोइम्यून बीमारियों,  रीढ़ की हड्डी में चोट अथवा ट्यूमर  के कारण भी हो सकता है। पैरालाइसिस का ठीक होना इसके होने की वजह अथवा  लगी चोट की सीमा पर भी निर्भर होता है। कुछ प्रकार का लकवा  थोडा या पूरी तरह से ठीक हो सकता हैं। आयुर्वेदिक  दवा या हर्ब लकवा  वाले शरीर (Ayurvedic herbs and medicine for paralysis) के प्रभावित क्षेत्र को ठीक करने में प्रभावी हो सकती है।

 

वात,पित्त, कफ,त्रिदोष का इलाज 


क्या आयुर्वेदिक पद्धति से लकवा का इलाज संभव है?
Is it possible to cure paralysis through Ayurvedic method?

आयुर्वेद एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है जो पक्षाघात के इलाज में प्रभावी हो सकती है, और इसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इसे बड़ों और बच्चों के इलाज में भी आवश्यक माना जा सकता है। आयुर्वेद विशेष ध्यान देता है शारीरिक लक्षणों के साथ-साथ रोगी के मानसिक स्वास्थ्य और वेलनेस पर भी।

आयुर्वेद मै इलाज के साथ आहार का परहेज क्या है?
What are the dietary precautions along with treatment in Ayurveda?

आयुर्वेद में पैरालिसिस का उपचार करने के लिए विशेष भोजन या आहार करने की सूची का पालन करना अनिवार्य होता है। वह भोजन जिसको पाचनतंत्र आसानी से पचा सके ऐसा आहार करने की  सलाह दी जाती है। ठंडे  की बजाय गर्म आहार का चयन करने के लिए कहा जाता है। जौ, राई और बाजरा आदि को खाने मै शामिल न करने को कहा जाता है। अपने भोजन में चुकंदर, भिंडी और गाजर जैसी सब्जियां ससम्मलित करने को प्रेरित किया जाता है। लकवा होने पर   वात को संतुलित करने पर प्रयास होता है।  अधिक तीखे, कसले ,कडवे स्वाद के भोज्य पदार्थ को ग्रहण न करने को कहा जाता है।

आयुर्वेदिक मै पंचकर्म से लकवा का उपचार बताया गया है:In Ayurveda, Panchakarma is used to treat paralysis.

स्‍नेहन :स्‍नेहन चिकित्सा में विभिन्न गुणधर्मी तेलों का उपयोग होता है, जो लकवे और पक्षाघात के उपचार में सहायक हो सकता है। इसमें महानारायण तेल, दशमूल तेल, और महामाष तेल का उपयोग किया जाता है। स्नेहन के साथ स्नेहपान और अभ्यंग प्रक्रिया भी सलाहित हैं, जो इस चिकित्सा का प्रभाव बढ़ा सकती हैं।स्नेहन को साधारण भाषा मै तेल से मालिश करना भी कह सकते है।
स्वेदन:-
दीर्घकालिक पक्षाघात के प्रबंधन के लिए स्वधाना की सिफारिश की जाती है और यह एक सामान्य उपचार के रूप में कार्य करता है। इसे शुद्धिकरण चिकित्सा में भी शामिल किया जा सकता है। विरेचन से पहले, स्वेदन और स्नेहन प्रशासित किया जाता है, विशेष रूप से पक्षाघात वाले व्यक्तियों के लिए, जिसमें उपनाह स्वेदन शामिल होता है, जिसमें प्रभावित क्षेत्र पर गर्म दवा का लेप लगाना शामिल होता है।कफ के साथ संयुक्त वात असंतुलन के कारण लकवाग्रस्त लोगों के लिए, कठोरता, चुभने वाला दर्द, दौरे, सूजन और त्वचा की संवेदनाएं जैसे चुभन या ठंडक जैसे लक्षणों का अनुभव करना, तप (फोमेंटेशन), तरल चिकित्सा, गर्मी (भाप) जैसे उपचार , और  उपनाहा स्वेदा प्रदान की जाती हैं।
मृदु विरेचन:-

विरेचन, पक्षाघात के प्राथमिक उपचार में आमतौर पर शुद्धिकरण चिकित्सा शामिल होती है।  स्निग्ध रेचन में, सादे या प्रसंस्कृत अरंडी का तेल, अकेले या दूध के साथ, पक्षाघात को नियंत्रित करने, दस्त को प्रेरित करने के लिए दिया जाता है।  घी में जड़ी-बूटियों से युक्त स्नेह मिश्रण भी विरेचन के लिए फायदेमंद है।  संसर्जन कर्म (7 दिनों के लिए संतुलित आहार) के साथ विरेचन की सिफारिश की जाती है।  वात प्रकृति वाले व्यक्ति, विशेष रूप से कब्ज का सामना करने वाले लोग, अरंडी का तेल, अरंडी दूषित हरीतकी, सेन्ना और हृदय विरेचन (दमन के लिए हृदय को मजबूत करने वाली जड़ी-बूटियाँ) का उपयोग करके दस्त को कम कर सकते हैं।

बस्ती:-

वात के बढ़ने या असंतुलन के कारण होने वाले रोगों के इलाज में बस्ती कर्म उपयोगी है।  यह आंतों को पूरी तरह से साफ कर देता है।  इस उपचार में मल के माध्यम से शरीर से अमा (विषाक्त पदार्थ) को बाहर निकाला जाता है।  इसके बाद आंत ठीक से काम कर पाती है।  सभी प्रकार के पक्षाघात में उचित समय पर निरुह बस्ति (औषधीय काढ़े का एनीमा) देने से लाभ होता है।  अरंडीमूल बस्ती (अरंडी की जड़ और अन्य जड़ी-बूटियों से बनी बस्ती), मधुतेलिका (शहद, तिल के तेल, गुनगुने पानी, डिल के पौधे और अन्य सामग्री से बनी बस्ती), सिद्ध बस्ती और राजयापन बस्ती (शहद, दूध, घी और अन्य पौष्टिक तत्वों से बनी बस्ती)  सामग्री) से बस्ती) का उपयोग निरुह बस्ती में किया जाता है।  निरुह बस्ती में शुद्धिकरण चिकित्सा शामिल है और पक्षाघात की सीमा और रोगी की जीवनशैली के आधार पर इसकी सिफारिश की जाती है।  लंबे समय तक लकवा को नियंत्रित करने के लिए मुर्धा तेल (सिर पर तेल लगाना) से शिरोबस्ती की जाती है।  शिरोबस्ती थेरेपी के माध्यम से विभिन्न औषधियों को काढ़े, तेल, दूध, छाछ या पानी के रूप में दिया जाता है। 

नस्य कर्म:-


नस्य कर्म में नाक में तेल या अर्क डालना शामिल है, जो हालिया पक्षाघात जैसी स्थितियों के लिए फायदेमंद है।  धन्वंतरम और शंदाबिंधु तेल वात-प्रमुख चरणों जैसे अर्दित, पक्षाघात, बेहोशी और मद के इलाज में महत्वपूर्ण हैं।  प्रधान नस्य, एक शुद्धिकरण चिकित्सा, कफ के कारण होने वाले पक्षाघात को दूर करने के लिए वाचा और कटफल पाउडर का उपयोग करती है, जो बेहोश व्यक्तियों, मस्तिष्क की चोटों वाले या मानसिक कोमा में रहने वाले लोगों के लिए मददगार होती है।

 पक्षाघात मै प्रयोग होने वाली देशी जड़ी बूटी

Native herb used in paralysis

अश्‍वगंधा:-

अश्‍वगंधा एक आंतरिक रोगप्रतिरोधक  क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी बू‍टी मानी जाती है जो कि   मांसपेशियों के कमजोर होने पर ऊतको को मजबूती प्रदान करती है, शरीरिक शक्ति की कमी, थकावट, सूजन,और लकवा ,त्वचा  के उपचार मै लाभदायक होती  है।अश्‍वगंधा विभिन्‍न रूप में उपलब्‍ध है जैसे कि काढे के रूप और पाउडर के रूप मै इसका प्रयोग घी में या तेल मे मिश्रण बनाकर प्रयोग करते है।  अश्‍वगंधा  के चूर्ण  दूध,गर्म पानी,अथवा मधु के साथ चिकित्सक कि सलाह अनुसार ले सकते हैं।

बला:-

बला शरीर और ह्रदय को मजबूती प्रदान करती ह। ये  ऊतकों को ताकत देती है।मासंपेशियो को मज़बूत करके पक्षाघात से पीड़ित  की कमज़री ू खत्म कर  ऊर्जा प्रदान करती है। बला नामक  जडी बूटी  मुख्य रूप से पर शरीर को मजबूती देती है तथा नसों की नव  कोशिकाओं का निर्माण करती है।बला शरीर के सुन्‍नपन, जोड़ों की बीमारियां, घाव, अल्‍सर और ट्यूमर,मांसपेशियो मै एठन से भी राहत दिलाती है।बला औषधीय तेल, काढ़े और पाउडर आसानी मिल जाती है। आप बला के चूर्ण को तेल, गर्म पानी या शहद के साथ या चिकित्सक के निर्देश पर ले सकते हैं।

रसना:- 

रस्ना में लैक्टोन, फ्लेवोनोइड और स्टेरोल्स जैसे पादप यौगिक शामिल हैं, जो अपने सूजन-रोधी, मांसपेशियों को आराम देने वाले, एंटीस्पास्मोडिक और स्फूर्तिदायक गुणों के लिए जाने जाते हैं।  यह रसना को पक्षाघात जैसी स्थितियों से निपटने में फायदेमंद बनाता  इसके वात हर (वात को नष्ट करने वाले) गुण रस्ना को पक्षाघात के उपचार में विशेष रूप से प्रभावी बनाते हैं।  अपने डॉक्टर की सलाह का पालन करते हुए रस्ना पाउडर को दूध, गर्म पानी या शहद जैसे विकल्पों के साथ अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

निर्गुण्डी :-

निर्गुंडी अपने सूजनरोधी गुणों के लिए जानी जाती है, जो जोड़ों और मांसपेशियों की सूजन, अल्सर से राहत देती है और हाथों या पैरों में मोच और सिरदर्द से राहत दिलाती है। लकवा से पीड़ित व्यक्तियों को निर्गुंडी तेल लगाने की सलाह दी जाती है। पाउडर के रूप में उपलब्ध निर्गुंडी फल का उपयोग पेस्ट या काढ़े के रूप में किया जा सकता है।  शहद या चीनी के साथ निर्गुंडी पाउडर का सेवन एक आम बात है, या चिकित्सक की सलाह के अनुसार लेना चाहिए। 

रसोनम:- 

रसोनम अपने विषहरण गुणों के लिए जाना जाता है, जो अस्थमा, नपुंसकता, त्वचा रोग, कोलेस्ट्रॉल, दौरे और अपच जैसी स्थितियों से राहत देता है।  विभिन्न जैविक घटकों के साथ, यह उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी स्थितियों जैसी पुरानी बीमारियों के प्रबंधन में सहायता करता है।  डॉक्टर की सलाह के अनुसार रसोनम पिंड चूर्ण को तिल के तेल के साथ लिया जा सकता है।  पक्षाघात के लिए, लहसुन आधारित काढ़ा रसोनम कषाय को खाली पेट पीने की सलाह दी जाती है।

इसके अलावा दशमूलारिष्‍टमहारसनादि क्‍वाथ      योगराज गुग्‍गुल आदि आयुर्वेदिक औषधियां भी लकवा के इलाज के लिए कारगर साबित होती है।

सारांश:- 

लकवा या पैरालाइसिस से उबरना एक बहुत ही धीमे धीमे चलने वाली प्रक्रिया है इसके इलाज मै बहुत अधिक धर्य रखना पडता है। प्रत्येक रोगी की स्वास्थ्य प्रकृति या परिस्थित अलग-अलग होती है।प्रकृति के गुण दोष भिन्न भिन्न होते है।इसी आधार पर व्यक्ति का इलाज और तरीके तय किये जाते है।सही औषधि सही मात्रा व अन्य नियम निर्धारित किए जाते है।अतः लकवाग्रस्त व्यक्ति को आयुर्वेदिक उपचार हेतु चिकित्सक से परामर्श लेकर औषधियो अथवा जड़ बूटी का प्रयोग करना चाहिए।

अस्वीकरण(Disclaimer)  :-लेख मै बताई गई औषधियो जड़ी बुटियो अथवा दवाई का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की सलाह से ले।यह लेख योग्य चिकित्सक की तरह जानकारी नही दे सकता। इस लेख मै सामान्य जानकारी है अतः बिना डॉक्टर की सलाह के दवाई का प्रयोग नुकसान दायक हो सकता है।अतः health baba news किसी भी स्थित मै किसी प्रकार से उत्तरदायी नही है।

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Faq:-

Q.1-लकवा के शुरुआती लक्षण क्या होते है?

Ans- उच्च रक्तचाप होना,सिर मै दर्द, मुंह से लारा,मूर्छा,सूजन,मांसपेशियो मै कमजोरी आदि लकवा के शुरुआती लक्षण होते है।

Q.2-लकवा किस विटामिन की कम के कारण होता है?

Ans-न्यूरल इंफेक्शन विटामिन B12की कमी से प्रभावित होते है।जो लकवा लगनी की बडी वजह होता है।इस विटामिन B12की कमी पक्षाघात का एक कारण है।

Q.3-लकवा मै किस चीज का परहेज करना चाहिए?

Ans-लकवा मै सरलता से पचने वाला भोजन करना चाहिए। इसलिए भोजन मै मैदा,अरहर,मटर सबसे महत्वपूर्ण नमक का सेवन बहुत ही कम मात्रा मै करना चाहिए। 

 Q.4-लकवा से बचने उपाय?

Ans- नियमित योग अभ्यास, सरसो तेल का इस्तेमाल, एक्युप्रेशर, लहसुन का सेवन, कलौंजी के तेल मालिश, अदरक का प्रयोग,एवं पूर्ण नीद लेना,नमक का सेवन कम करके लकवा से बचाव किया जा सकता है।

Q.5-लकवा का हास्पिटल कहाॅ पर है? अथवा लकवा का इलाज कहाँ होता है?

Ans-लकवा का इलाज भारत मै बहुत से स्थानो पर होता है।कुछ  हास्पिटल के नाम ये है

1-डॉक्टर बी के भंडारी लकवा निदान केंद्र नर्सिंग बाजार मार्ग सीहोर, धार,इंदौर, मध्यप्रदेश 454774

2-वरदान आयुर्वेदिक लकवा केंद्र पोर्टल मध्यप्रदेश 

3-इन्दौरगौरादेवी हास्पिटल आजाद नगर इंदौर मध्यप्रदेश 

4-आयुर्वेदिक इलाज जीवा हास्पिटल पंचकर्म सेंटर इंदौर 

5-नागपुर मै बहुत से हास्पिटल है।

6-भारत के समस्त एम्स हास्पिटल। मेडिकल कालेज मै निशुल्क अथवा बेहद कम कीमत पर इलाज होता है।

Q.6-क्या लकवा का मंत्र से इलाज होता है?

Ans-भारत मै अशिक्षा और अंधविश्वास के कारण लोग को तंत्र मंत्र से लकवा का इलाज करना चाहते है।उन्हे ऐसा लगता है कि झाड़फूक से लकवा ठीक हो जाएगा।परंतु इस प्रकार का कोई वैज्ञानिक आधार नही है।इसलिए लकवाग्रस्त व्यक्ति को चिकित्सक से इलाज करना चाहिए। 

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